टिप्पणी : धर्म के मुद्दे पर फिर से वोट
संविधान के प्रथम पृष्ठ में दी प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द होने के बावजूद भारत में एक बाहुल्य विशेष धर्म सें जुड़े कुछ लोग अपनी आस्था के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों के साथ अनुचित टिप्पणी एवं मोब्लिचिंग कर रहें हैं। उन्हें भारतीय संविधान और क़ानून की जरा भी चिंता नहीं हैं
भारतीय संविधान में भारत को एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र के साथ एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र रूप में वर्णित किया गया हैं जिसका सीधा मतलब हैं कि भारत में किसी भी धर्म विशेष को राष्ट्रीय धर्म के तौर में मान्यता नहीं दी जाएगी। इस धर्म निरपेक्ष शब्द को बाकायदा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संविधान के 42 वें संविधान संशोधन 1976 के तहत जोड़ा गया हैं ।
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हालांकि इसके पहले सें ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 25, 26, 27 और 28 में धार्मिक स्वतंत्रता का वर्णन किया गया हैं। जिसमें हर एक भारतीय नागरिकों को बिना किसी भय सें अपने धर्म को मनाने का अधिकार हैं। जिसे 42 वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द को जोड़ कर एक बार फिर सें परिभाषित किया गया हैं
लेकिन हाल ही के कुछ वर्षो में संविधान के प्रथम पृष्ठ में दी प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द होने के बावजूद भारत में एक बाहुल्य विशेष धर्म सें जुड़े कुछ लोग अपनी आस्था के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों के साथ अनुचित टिप्पणी एवं मोब्लिचिंग कर रहें हैं। उन्हें भारतीय संविधान और क़ानून की जरा भी चिंता नहीं हैं
वही सरकारें भी देश में बढ़ती हुई भाईचारा की नफरत को अपने वोट बैंक के रूप सें उपयोग कर रही हैं। कभी कभी तो वह इसे रोकने कि वजह इस पर घी डालने की भी कोशिश करती हैं। जिससे सीधे तौर में गलत विचार धार को जन्म होता हैं
वही कुछ पार्टी के प्रवक्ता देश के नामी टीवी चैनल में बैठ कर आये दिनों धार्मिक मुद्दे पर अराजकता फैलाने वाली बात भी करते रहते हैं। और सरकार अपने प्रवक्ता को पार्टी में उच्च सम्मान देती हैं हद तो तब हो जाती हैं ज़ब टीवी एंकर भी इन प्रवक्ता के साथ मिलकर देश में अराजकता फैलाने की कोशिश करते हैं।
देश में महज कुछ ही दिनों में लोक सभा चुनाव हैं जिसे लेकर जगह - जगह राजनीतिक पार्टी के लोग रैलिया एवं भाषण देते नजर आ रहें।
कही- कही तो राजनीतिक पार्टी के लोग देश के असल मुद्दे (जैसे महंगाई, रोजगार, सामाजिक समानता, आर्थिक समानता) को दरकिनार कर फिर सें धर्म विशेष के नाम पर लोगों सें वोट मांग रहें हैं। वह यही तक नहीं रुक रहें बल्कि भारतीय संविधान को परिवर्तन करने तक की बात कर रहे हैं
मुझे आपसे उम्मीद हैं आप इन लोगों को अच्छे सें जानते होंगे। आप अपने वोट सें देश का संविधान और लोकतंत्र को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। (लेख- टीकाराम सनोडिया)
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खाते की भूमिका
यह लेख एडमिन द्वारा पोस्ट किया गया है, इस ब्लॉग में सामग्री पूरी तरह से विश्वसनीय है। प्रोफ़ाइल