मेरा लेख - एक नई पहचान समय सत्ता चीफ एडिटर

क्या सरकार के दवाब में है चुनाव आयोग

हमेशा ही देश के नामी TV चैनल एवं पत्रकारों की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट के विपरीत परिणाम चुनाव के नतीजे पर बहुत बडा सवाल खड़ा करता हैं

Samay Satta Samay Satta
भारत, 
क्या सरकार के दवाब में है चुनाव आयोग
क्या सरकार के दवाब में है चुनाव आयोग

समय सत्ता संवाद। लोकसभा चुनाव हो या फिर किसी राज्य का विधानसभा चुनाव। जब भी परिणाम आता हैं लोगों कों सोच में डाल देता हैं। यही मेरे साथ हो रहा हैं। क्योंकि मैंने जो परिस्थिति ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट में देखा और समझा है वह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम के ठीक विपरीत हैं।

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हो सकता हैं, मेरे समझने में परिणाम गलत साबित हो। लेकिन हमेशा ही देश के नामी TV चैनल एवं पत्रकारों की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट के विपरीत परिणाम चुनाव के नतीजे पर बहुत बडा सवाल खड़ा करता हैं ।

यदि मैं EVM पर सवाल करू तो लोग मुझे भी नेता समझ लेंगे। जो मैं बिल्कुल भी नहीं हूँ.. मैं एक पत्रकार हूँ। जब ग्राउंड जीरो में जाकर लोगों के विचारों कों जानता हूँ तो चुनावी मुद्दे से आने वाले परिणाम कों अच्छे से समझते हूँ ग्राऊंड जीरो की रिपोर्ट से इस बात का अहसास होता हैं कि किसका पलडा भारी हैं।

मैं 100 प्रतिशत तो नहीं कह सकता हूँ कि ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट सही साबित हो, लेकिन इतना दावे के साथ कहा सकता हूँ कि 50 प्रतिशत ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट सही साबित होती हैं। क्योंकि आज तक जो भी एग्जिट पोल बनाये जाते हैं वो भी ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट पर आधारित होते हैं हालांकि कुछ समय से पत्रकारों ने अपना दायित्व भूल कर ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट कों मोनिपोलेट कर रहें हैं लेकिन सभी पत्रकारों के लिये यह कहना भी अनुचित होगा।

कहते हैं ना, भारत कों आजादी कैसे मिली सब कों बताया जाता हैं। यह तक कि इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में भी रखा गया हैं लेकिन सभी कों यह नहीं बताया जाता हैं कि भारत गुलाम कैसे हुये था यदि अंग्रेजो के हाथों भारत के काबिज होने के क्रम कों समझें तो आपको लगेगा हम उसी क्रम में पहुचे चुके हैं। जहां से भारत का गुलाम होने का क्रम शुरू हुआ था। इसका पहला कदम "फूट डालो और शासन करो" की राजनीति है जो आज हर एक गली-मोहल्ले तेजी से फलफुल रही है। 

"फूट डालो और शासन करो" कि नीति से उत्पन्न विकराल परिस्तिथि ने एक देश कों सोने की चिड़िया से सपोरों का देश बना दिया था लेकिन दुर्भाग्य की बात हैं इस नीति को आज हम लोग पूरी तरह से भूल चुके है और इसी क्रम में अपना पहला कदम रखा चुके हैं लेकिन याद रखना जब आपसे आने वाली पीढ़ी "फूट डालो और शासन करो" की नीति का जिम्मेदार व्यक्ति का नाम पूछेगी तो किसी अंग्रेज का नाम मत बता देना। क्योंकि इस नीति का जिम्मेदार अपने आसपास का वो व्यक्ति है जो अपनी राजनीतिक फायदे के लिए आज भी आपको एक दूसरे से लड़ने का काम करता है। (टीकाराम सनोडिया - मेरे निजी विचार) 


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